【【{{{{पछता पछता कर}}}}】】
गठड़ी बांध के गलतियां कंधों पर उठा उठा कर,
तड़प रहे हैं कल के शहजादे अब पछता पछता कर।
पहले तो खिलौना समझ खेलते रहे ज़िन्दगी से,
अब वक़्त गुजर गया तो रो रहे हैं पछता पछता कर।
टूट गए नासमझी में नादानों से दिल लगाकर,,हुए
बदनाम तो अब चल रहे है सर झुका झुका कर।
कोई नही करता रहम सतरंज के खेल मे,अब तो
वक़्त ने चल दी चाल,फिर रहे सब घबरा घबरा कर।
मौत से बदत्तर हो गया जीना दिखावे की दुनिया में,
आँसू पी रहा हर कोई नजरें खुद से ही चुरा चुरा कर.
निकाले से भी नही निकलती सांसें अब जिस्म से,
मजबूरी होगयी है जीना खुद को तड़पा तड़पा कर।
खुदा तो बहुत करता है इशारे बचने को,जान निकली
तो रावण ने भी क्या कर लिया पछता पछता कर।
हर कोई क़ाबिल है यहाँ खंजर चलाने मे,पीठ दिखायोगे
तो कर देगा ज़ख्मी,खंजर चला चला कर।
कितनी भी करलो मिनतें जो छोड़ गया उसे फिर से
मनाने की,दर्द ही पायोगे फिरसे उसे मना मना कर।
कल तक खा रहे थे जो कसमें साथ निभाने की,आज
तुमको वही ठुकरायेंगे झूठा बता बता कर।
हमने भी क्या पा लिया झुठ पे सच्चाई का दाम लगाकर,
भटकते फिर रहे आँसू अब इन आँखों में दिल से
निभा निभा कर।
आज जिसे बता रहे हो अपना सहारा,कल वहीं उछालेगा
नाम तुमारा उंगली उठा उठा कर।
विश्वास के नही क़ाबिल कोई मतलबी दौर में यहाँ,लूट ले
जाएगा कोई तुमारी खुशियां अपना सा बन,
मुस्करा मुस्करा कर।
नही अब कोई साथ देता दिल से किसी का,लाख करलो
यत्न चाहे कितना भी किसी को आजमा आजमा कर।
खेल मोहब्बत का है बदनाम हो गया,प्यार जता रहा हर
कोई तन से तन लगा लगा कर।
तमाशबीन है सारा ज़माना,मरहम लगाएगा कांटों से
ज़ख़्म पर,दवा में ज़हर मिला मिला कर।
खुद का ज़मीर ही करेगा खुद की शराफ़त की चोरी,भागते
फिरोगे एक दिन खुद से नजरें चुरा चुरा कर।
नाम मत लो उस बेवफा का जो ठुकरा के चला गया,सदियां
गुजर गई जिसे नाम से बुला बुला कर।
ये तन्हाइयों का शोर न बर्दास्त होगा तुमसे,दिल खुद ही
मरने को करेगा दीवारों से टकरा टकरा कर।
ज़िन्दगी गुलिस्तां हो चली मुरझाये फूलों की,महक जीने
की दम तोड रही मुरझा मुरझाकर।
मत भूलो तुमारे अपने ही लड़ेंगे तुमारी जायदाद की खातिर,
एक दिन छोड़ आएंगे तुमको शमशान में ये जला जला कर।
लिखने वालों ने भी कितना लिखा नक़ाब दुनिया का,समझ
फिर भी न आई किसीको चले गए यहाँ कितने ही समझदार
हक़ीक़त को समझा समझा कर।
बात को समझ कर आगे बढ़ने वाला ही बचेगा,गिरकर उठने वाला ही हसेगा, कितने ही फ़कीर चल दिए बस एक यही बात सीखा सीखा कर।
कर लेने दो इनको भी अपने शौंक पूरे सारे,अमन एक दिन किताबों का महल बनाएगा,जब करेगा नाम अपना
अखबारों में आ आ कर।
हमसे भी करी थी किसी ने सिफारिश लिखने की पछतावे पर,
हमने भी लिखा है निचोड़ जिंदगी का सारा पछता पछता कर।