【【{{{{अज्ञान}}}}】】
खारे पानी में डूबा आसमान,
धरती पर फैला अज्ञान.
कितने ही धर्म बन गए,
कितनी जाती में बंटा इंसान.
रीत रिवाज़ का हाल न पूछो,
लोभ लालच का छूटा बाण.
दिखावे की चुनरी ओढ़ी,
खो रहा सब मान सम्मान।
मैं मैं की है हवा चली,
कोरे कागज की नाव जली.
अंधेरे में रात पली,
चाँद के हाथों लाज जली।
तड़क भड़क में खोई माई,
बूढ़ों ने है बसरीं बजाई.
नाचे सब एक धुन पर,
माने न कोई बहन भाई।
मिलावट का दौर है,
नेता जी के घर शोर है.
गरीब तो है तड़प रहा,
खबर है,अमीर की बिल्ली
कमजोर है।
मारामारी सड़कों पर,
अकड़ चढी लड़कों पर।
गुंडों की भांति बात करते,
धक्का मुक्की रोज करते,
वक़्त गुजर रहा लफड़ों पर,
संस्कार जले सब कपड़ों पर।
बेटियां भी कहाँ कम है,
आधा खुला,आधा ढका तन है.
फैशन में खोया मन है,
चलता फिरता बन रहा सनम है।
चुनरी भी कहीं दिखती नही,
नारी में भी नारी दिखती नही।
कैसा ये अंधकार है,
फैली क्यों हाहाकार है.
किस तरफ ये दुनिया चली,
हर कोई बना बाहुबली,हर कोई बना बाहुबली।