©®°°°|||【दुनिया】|||°°°®©
आग-ऐ-शोलों पे चलाती है दुनिया
हर काम मे टांग अड़ाती है दुनिया।
सुनती नही किसी की कभी अक्सर
अपनी ही अपनी चलाती है दुनिया।
दूसरों के पथ पर ढेरों रोड़े बिछाती
अपने पथ से रोड़े हटाती है दुनिया।
स्वार्थ में डूब कर हर काम करती है
बे-वज़ह नही काम आती है दुनिया।
कई सुंदर रिश्ते लिए फिरती है ये,पर
एक रिश्ता भीनही निभाती है दुनिया।
हर कोई है मगन हित में बस अपने
परहित पे कब नजर उठाती है दुनिया
भूखे प्यासे मर जाते हैं कई लोग,पर
एक निवाला नही खिलाती है दुनिया।
फँसाकर शरीफ़ बेचारों को, बचकर
गुनाहों सेसदा निकल जाती है दुनिया।
अपने ग़मों की बस लगाती है क़ीमत,
औरों कीतोबस हंसी उड़ाती है दुनिया।
समझते हैं आजकल सभी रिश्ते खूनके
इंसानी रिश्ते नहीसमझ पाती है दुनिया।
कवि-वि के विराज़