【इस तरह न दो मुझे नज़र की सफ़ा】
इस तरह न दो मुझे नज़र की सफ़ा,
कभी तो मेरे लिये सरेआम बन।।1।।
ज़ख्म जो मिले तेरी वज़ह से दिल को,
भरने को उनको सुहबत-ए-ताज़* बन।।2।।
*अच्छी संगति
चलो छोड़ा सभी बातों को कोई नहीं वजह,
अब तो मेरे लिए सरे बाज़ार बन।।3।।
शिफ़ा तो तुम तब भी थे हस्र के तले,
और शिफ़ा के वास्ते, शिफ़ाअत^ तू फिर बन।।4।।
^कोशिश
माना, सिकंदर भी तुम्ही उसका जज़्बात भी,
तू फिर मेरे लिए फिर, फ़क़त जज़्बात बन।।5।।
‘अभिषेक’ के लिए तुमने सोचा है कभी,
एक बार उसके लिए बाग़-बाग़ बन।।6।।
©अभिषेक पाराशर??????