✴️✴️प्रेम की राह पर-70✴️✴️
##रीकॉल करना कुछ नहीं था##
##डेढ़ फुटिया ही कोटेक महिन्द्रा के मैसेज भेजती थी##
##मेरी बातों को नोट करने के लिये कॉपी और कलम भी साथ रखी थी##
##इतनी आसानी से फँसने वाले नहीं थे##
##डेढ़ फुटिया को अपना कुछ न बताया##
##सिवाय अपने परिचय के##
फिर वही जड़ता का प्रदर्शन हुआ उस महिला से जिसे एक उच्च अकादमी से शिक्षित माना और उसने मुझे ही अपने 12 वर्ष के ठलुआ ज्ञान से,हाँ ठलुआ ही कहेंगे कि उस व्यक्ति की बुद्धिमत्ता नहीं है कि वह दिल्ली जैसे शहर में रहकर मौजमस्ती करें और विशुद्ध बेरोजगार है,अभी भी और इसे ही सिद्ध करती हुई कि औरत अभी भी पुरुष पर निर्भर है।लपेटे में देकर किसी की लिखी हुई कोई शायरी लिख दी तो उससे ज्ञानी नहीं हो जाते।ज्ञान का स्तर किसी अन्य व्यक्ति को लिखे गये सन्देश से पता नहीं लग जाता है और वह व्यक्ति भी मनोरोगी नहीं हो जाता।पर हाँ तुम निश्चित कमजोर थीं क्योंकि मैंने कहा था कि क्या तुम बौनी, हाँ,डेढ़ फुटिया, मेरी उत्तरों को जाँच सकोगी।तब तो सरमाकर ऐसे मना किया था कि केवल छटाऊ ज्ञान लिये हो। तभी पता लग गया था कि यह कोई केवल डिग्री के लिए पढ़ रही है।सिविल सेवा का आधार तो था,मेरे विचारों में।मेरे पास तो समय का अभाव है परन्तु तुम से अब तक एक एग्जाम न निकला यह है तुम्हारी मेधा शक्ति।एक अच्छा विद्यार्थी ही अच्छा शिक्षक हो सकता है तो तुम घटिया शिक्षक बनोगी।और तुम्हारा वाहियातपन तुम्हारे विभिन्न नामों से टेलीग्राम से भेजे गए सन्देश हैं।जो यह सिद्ध करता है कि तुम्हारा चरित्र इतना भर है कि इंद्रप्रस्थ की तरह इतना तो चलता है।कोई बात नहीं।हमारा चरित्र तो एकदम साफ़ है।कोई व्यक्ति यदि यह लिख दे या कह दे,वह भी केवल पढ़ाई के अलावा कोई काम नहीं करती तो उसका प्रभाव भी तो होना चाहिए।उसके व्यक्तित्व पर।हमनें तो स्वीकार किया था कि मैंने तुम्हारे लिए मैसेज किये थे और अपराध बोध भी था।मैं तो व्यस्त हूँ, परन्तु तुम तो पढ़ती रही, उसके बाद यह कहना कि सिविल सेवा का मैंने मैन्स लिखा है।बिल्कुल नहीं।मैन्स लिखने वालों का कोई कोई सुझाव, लेखन ऐसा होता है कि वह स्वतः बताता है कि यह इस विधा का मालिक है।एक नपुंसक किताब के अलावा कोई और शोध किये हैं क्या।तो विचार भी नपुंसक हो गए।चूँकि अपनी पुस्तक का उपसंहार करना था,इस यात्रा में कई मूर्खों से कई बातें सुनने के,देखने को और कहने को मिली।परन्तु उन्हें मैंने इसलिए सहन किया कि पुस्तक के जो भाव हैं ‘प्रेम की राह पर’ उसके मंतव्य उसका वक्तव्य सब स्थान से च्युत हो जाएगा।सब सहन किया और आखिर में वह भी किया जिससे उपसंहार के हेतु किसकी विजय हुई संसारी प्रेम अथवा आध्यात्मिक प्रेम की।मेरा आध्यात्मिक प्रेम की ही जय हुई।उस संसारी प्रेम में वह स्त्री या तो उसका कोई चक्कर हो कहीं, सीधी बात अथवा वह मेरे योग्य न थी।ऐसा ही मानना मेरा ज़्यादा उचित होगा।फोन पर प्रश्न करने की शैली अच्छी थी, चूँकि वर्तमान समय में कॉल भण्डारित(रिकॉर्ड)हो जाती है तो सिवाय दबने के कुछ हो नहीं सकता था।वह भी समय को देखते हुए सही और तत्काल निर्णय अधिक प्रभावी था।सो लिया।हाँ एक चीज़ और डेढ़ फुटिया ने कही कि सामने होती तो क्या न करती।माँ कसम हे पीएचडी तुम लिखने बैठो और हम लिखने बैठें,फिर मालूम पड़े कौन ज़्यादा ताक़तवर है।ख़ैर।
पहली कॉल10:20AM(12.11.2022) पर की गई।तब वह व्यस्त थी। दूसरी कॉल 11:49AM पर की गई तब डेढ़ फुटिया को मेरे आवाज़ साफ नहीं आ रही थी।उसी समय मेरे मन में यह विचार आया था कि शाम को कॉल करूँगा तो यह तब तक अपनी पटकथा भी लिख लेगी।इसे स्वीकार करते हुए अपने जीव को विश्राम दिया।दिन भर के विचार कौंधे।मनोवैज्ञानिक ढंग से उन्हें काटता गया और अपने निर्णय के अनुसार 06:38PM पर कॉल किया गया।घनन घनन करती हुई घण्टी गई।नहीं उठा और उठता भी नहीं क्यों समझे।कॉल रिकॉर्ड जो होनी थी।तो उधर से 06:40PM को पुनः अपना सड़ा हुआ परिचय दिया।तुरन्त ही डेढ़ फुटिया ने कहा कि आप कैसे जानते हैं मुझे।मैंने तो प्रयागराज में कभी लिटी चोखा नहीं खाया है।मैं सन्न था।कि यह वही डेढ़ फुटिया लड़की है जिसने मेरे लिए अपना फ्रेंड सजेसन 1 जनवरी 2021 को दिया था(ईमेल की प्रति सुरक्षित है) और वही लड़की,हाँ,हाँ डेढ़ फुटिया महिला शक्ति का प्रयोग कर डरा रही है,सागर जैसे शान्त रहकर उसके 10-20 लोग हमें भी जानते हैं,अपने वाहियात होने के ताने और प्रयागराज निवासी सम्माननीय गुरुजी की अर्धांगिनी के ज़िक्र का सुझाव अपने कानों में डालते रहे।भाई दबना पड़ता है जब औरत बोले और वह भी बेरोजगारी की मारी पढ़ी लिखी महिला हो तो दोगुना खिसियानापन हो जाता है।वह भी क्यों इसलिए कि घर पर यदि बेरोजगार लौटे तो रिश्तेदारों के ताने सुनने को मिलेंगे कि डेढ़ फुटिया इंद्रप्रस्थ में झण्डा लहराने और रूप सज्जा के अलावा कुछ न कर सकी और इधर उधर होने वाली घुसुर फुसुर और ब्याज में।फिर वही आदिम अलाप लगाती रही डेढ़ फुटिया साथ में “मैं कैसे ट्रस्ट करूँ” “कैसे ट्रस्ट करूँ”का नारा।अग़र आईएएस बन जाता तो लपक लेती डेढ़ फुटिया मुझे भी।अब तो सुनो होने वाले रूपकिशोर के अंग अंग चेक करना।ट्रस्ट के लिए।समझी डेढ़ फुटिया।एक सिंगल एग्जाम न निकला 12 वर्ष शिक्षा की खेती में। इसी दिशा में तो उससे क्या होने वाला है और रही बात शिक्षक की कौन सी सरकारी हो।कौन सी अतिथि की तरह रखकर रखेंगे कॉलेज वाले।ज़्यादा से ज़्यादा गेस्ट लेक्चरर रख लिया जाएगा।जहाँ पूरा काम लिया जाएगा।हर तरीके का।चाहे जो जिन्द या कुरूक्षेत्र जाओ।बच्चों को यौनशिक्षा ही देना।टेबूड़ विषय बहुत रोचक हैं।क्योंकि दिल्ली के मार्केट से सस्ती तौल वाली किताबें खूब पढ़ ली हैं।अब वही पढ़ाना बच्चों को।देखो हमें तो अपराध बोध था अपने इस अपराध का।तुम से भी ऐसे कोई रूप लटक नहीं रहे थे कि हम इतने आसक्त हों कि ब्रह्मचर्य की तोपें चला रहे हों।तो सुनो नेपोलियन की हाइट।तुम इतनी शिक्षित होने के बाबजूद अभी भी अशिक्षित हो।तुम्हें खूँटा ठोंकने वाला व्यक्तित्व मिल गया है।तुम्हें अज्ञात थपेड़ों से पीड़ित करेगा।रही सही यहाँ से तुम्हें नवीन नवीन दास्तान महशूस होंगीं।वह भी शनै: शनैः में अपनी पुस्तक का उपसंहार तो करूँगा ही पर उसमें तुम्हारी योग्यता का निनाद तो जरूर प्रस्तुत करूँगा।महापुरुष कहते हैं कि जैसा चिन्तन होगा वैसे आप बन जायेंगे।नपुंसक स्वाध्याय से तुम्हारे विचार भी नपुंसक हो गए हैं।वैसे भी अकादमिक शिक्षा पढ़ो और लपेटो वाली हो गई है।”सुख दुःख शत्रु मित्र जगमाहीं, मायाकृत परमारथ नाहीं”।तो नेपाली सुन्दरी तुम्हारी सुंदरता कुख्यात है।यार दोस्ती वाली जिन्दगी।अब परिवार में बदल जायेंगी।हैं न।माता पिता से झूठ बोलकर जाने क्या क्या किया होगा।?छीं छीं।परन्तु वह सब परमात्मा के यहाँ अंकित है।बड़े रहस्य के साथ तुम्हें तुम्हारे हश्र तक पहुँचाने में ईश्वर हमारा सहयोग करेगा।यदि तुम्हारे ‘विश्वास कैसे कर लूँ’ के जबाब में उस ईश्वर के यहाँ मेरा विश्वास उच्च ठहरा।हे नेपाली आँख वाली कुरूप स्त्री!तुम अपने ठिगने और डेढ़ फुटिया कद पर सुन्दरता का आलेप न करो।क्योंकि इस वैज्ञानिक युग में कुरूप को भी स्वरूप दिया जा सकता है।वैसे भी तुम्हारे चलभाष क्रमांक पर वार्ता की उसमें पुस्तक का उपसंहार ही निहित है।दारुण नहीं कष्ट नहीं और कोई सन्ताप नहीं।सब कुछ सोचकर कि या तो उच्च शिक्षित महिला से दुत्कारा जाऊँगा या फिर विनोद का दान मिलेगा।परन्तु मिश्रित परिणाम का उद्भव हुआ उसमें भी चूँकि वैज्ञानिक युग है,संभवतः कॉल रिकॉर्ड की जा रही होगी।अतः सिवाय क्षमा माँगने के कोई शब्द मेरे पास नहीं था।यह सब अंगीकार और स्वीकार करना पड़ा।उपसंहार के लिए मैंने ‘फालतू हो’पेंट गीली हो जाएगी, दम मत लगाना’आदि सभी बातें दुकान चलाऊ नेता से सुनने को मिली।उसका भी अंत करेंगे।पर अभी नहीं समय की प्रतीक्षा है। परन्तु पुस्तक के सभी पहलू मिलकर अब वह आह्लाद थम गया।कोई प्रेम की नई दिशा का उदय न हुआ।मेरा आध्यात्मिक प्रेम ही विजित हुआ।संसारी प्रेम अस्पृश्य ही रहा।परन्तु उससे जो संभवतः ज्ञानी समझती हो डेढ़ फुटिया,अपने नज़र में और मेरी नज़र में भी थी परन्तु यह बोलकर कि हमने भी सिविल सेवा का मैन्स लिखा है उसकी इस बात ने उस डेढ़ फुटिया की पोल खोल दी और उसी दिशा में कोई सार्थक निदान न निकला।तुम यह कहते हुए कि मैंने भी सिविल सेवा का मैन्स लिखा है,ऐसी न तो लिखावट मिली और नहीं वार्ता से शान्ति।मैं तो सॉरी सॉरी बोलकर काम चलाता गया और सुनता गया।क्यों कि मैं समझ गया था कि फोन मैंने किया और उठा नहीं।उधर से आया तो निश्चित था कि कॉल रिकॉर्ड हो रही है।इसलिए उसे स्वीकार करते हुए सॉरी सॉरी का तकिया कलाम प्रयोग किया।चलो अग्रिम जीवन की शुभकामनाएं।परन्तु उस जीवन का क्या जिसमें अन्धड़ हों।पहले तो कर लो और फिर मिलावट को ऐसे प्रस्तुत किया जाएगा कि संतति भी याद रखेगी।तुम्हें प्रसाद मिलेगा जल्दी ही।ईश्वर तुम्हें कभी क्षमा नहीं करेंगे।तुम्हें एक ऐसे प्रेत से पीड़ित होना पड़ेगा जो तुम्हारे सभी विचारों का नाश कर देगा।किसी भी सफाई की जरूरत नहीं है।जो जानना था वह जान लिया।अब भुगतो।पुस्तक का रूप और उपसंहार तब ज़्यादा सार्थक होगा जब तुम्हारा पतन देखने को मिलेगा।कोई न बचाएगा।उठा उठा कर पटकवाऊंगा।याद रखना। “जो अपराध भगत कर करहीं, राम रोष पावक सों जरहीं”जय श्री राम।
##पुस्तक के लिए जो कुछ मिलना था वह मिल गया##