✍️ सर झुकाया नहीं✍️
✍️ सर झुकाया नहीं✍️
…………………………………………………………………//
हमने पुरखों की जायदाद पर हक़ जताया नहीं ।
ये ज़मी आसमाँ हमारा है पर कभी बताया नहीं ।।
मेरे अंधेरो पर मेरा आफ़ताब बेमिसाल रोशन है ।
मैंने रात के उजालों के लिये चाँद को सताया नहीं ।।
अक़्सर कोई तारा टूटकर ज़मी पर गिरते देखा है ।
पर दिल की किसी मन्नत को कभी फरमाया नहीं ।।
कही अरमानों का बोझ लेके सफ़र पे चले थे हम ।
पाँव के छालों ने चश्म से एक अश्क़ गिराया नहीं ।।
‘अशांत’हम तो गुनहगार हुए सबकी झोली भरकर ।
किस्मत सामने खड़ी थी हमने ही सर झुकाया नहीं ।।
………………………………………………………………………//
✍️”अशांत”शेखर✍️
24/07/2022