✍️सियासत✍️
✍️सियासत✍️
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एक अज़ीब सी गुफ़्तगू है बंद शामियानों में
कोई गहरी साज़िश थी दूर किसी मकानों में
कोई फ़ासला भी नहीं मंदिर से मस्ज़िद का..
ये कैसी घबराहट थी रमजान के अजानों में
कल मेरे खून का कतरा था तेरी हथेली पर
आज ये ख़ामोशी है तेरी बेफ़िक्र ज़बानों में
हमने खेले थे मौसम के सारे रंग तेरे आँगन में
हाँ कोई लूट मचा गया है ख़ुशी के खजानों में
बड़े ही अनोखे खेल चल रहे है सियासत के..
कोई गुनहगार नही मिलेगा उनके दास्तानों में
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©✍️”अशांत”शेखर✍️
24/05/2022