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23 Aug 2022 · 1 min read

✍️वो मेरे शहर से सिकंदर बना✍️

✍️वो मेरे शहर से सिकंदर बना✍️
……………………………………………………………………//
अपने मिज़ाज में वो बादल चाँद को ढांककर गया
वो कौन है मेरे अँधेरे छत पर सूरज दिखाकर गया

थोड़ी रोशनी के लिए तन्हा फिरता रहा हूँ दरबदर
वो उजालो का अख़्ज घर का चिराग चुराकर गया

तब किस्से बने थे कहानी तो अब लिखी जायेगी
फर्क इतना है के इस कहानी से मेरा किरदार गया

कितनी परतों के नक़ाब में रहता है उसका चेहरा
वो तो अपनी झूठी शक़्ल भी मुझसे छुपाकर गया

आज भी जमी पे खड़े है अपने साये से जुड़े है हम
फुटपाथ के सोये बच्चो पर मैं चादर ओढ़कर गया

‘अशांत’ हम तो फकीर है हमें चाहत नहीं अर्श की
वो तो मेरे ही शहर को लूटकर बनके सिकंदर गया
……………………………………………………………………//
©✍️’अशांत’ शेखर✍️
23/08/2022

3 Likes · 6 Comments · 173 Views
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