✍️जब रिक्त हथेलियाँ…
जब रिक्त हथेलियाँ
खाली पेट कड़ी धुप निगलकर
ज़िस्म के पसीने से अश्क़ पीकर
मेहनताने की तलाश
में भूखी भटकती है हताश…
सहनशीलता के अंत में
वे आखिर मुट्ठियां बन जाती है
और इंकलाब का सैलाब लाती है
ये रिक्त हथेलियाँ परिवर्तन के
लिये एक हथियार बन जाती है
समग्र मानव क्रांति के विचारों की
असरदार कलम बन जाती है
हुक्मरानो द्वारा सरज़मी के
हथेलियों को लंबी अवधी तक
रिक्त छोड़ना उनके
‘तख़्त-ओ-ताज’
के लिए बड़ी चुनोती है
यक़ीनन रिक्त हथेलियां
कभी भी विद्रोह पर उतर सकती है
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©✍️’अशांत’ शेखर
31/10/2022