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14 May 2023 · 1 min read

✍️ख्वाबों की वास्त्विक्ता✍️

ख्वाबों की बालकनी से आज मैंने वास्विकता को देखा,
उन चमकते हुए आसमां के अनगिनत सितारों को देखा,
सड़क किनारे उन छोटे बच्चो की चमक भरी आँखों को देखा,
जो एक टक उस आसमां को निहारे जा रही थी,
आसमां जितना टिमटिमाते सितारों से भरा था,
उनके हाथ उतने ही खाली थे,

एक बड़े से बंगले को लाइटों से जगमगाते देखा,
एक छोटी सी कुटिया को रोशन करने वाले उस दीपक को देखा,
जो जलकर भी लाचार आँखों को रोशनी दे रहा था,

पब और बार में बिगड़े लड़कों को पिता के पैसे उड़ाते देखा
घर-बार से दूर बच्चों को संघर्ष का बोझ उठाते देखा,
जो जरूरतों के लिए अपनी इच्छाओं का दमन कर रहे थे,

एक खूबसूरत लड़की को अपनी खूबसूरती की नुमाइश करते देखा,
एक शालीन सी लड़की को बिखरकर खुद को संभालते देखा,
जो माँ बाप की इज़्ज़त के खातिर उनसे विदा ले रही थी,

कभी वस्विकता को ख्वाबों में देखा,
कभी ख्वाबों को वस्विकता में बदलते देखा,
हाँ आज मैंने ख्वाबों की बालकनी से वस्विकता को देखा।

✍️वैष्णवी गुप्ता (Vaishu)
कौशाम्बी

Language: Hindi
68 Views
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