✍️इश्तिराक
✍️इश्तिराक
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मैंने वक़्त को ओर थोड़ा समय माँगा
उसने मेरे रुके कदमो को हिसाब माँगा
वक़्त ने कहाँ बढ़ता चल मैं तेरे साथ चलूँगा
सफर में जहा तेरे कदम थके,मैं वो पथ रुकूँगा
मैंने जिंदगी को फिर थोड़ी साँसे माँगी
उसने दिल को धड़कने का जवाब माँगा
जिंदगी ने कहाँ जी ले पलों को मैं तेरे साथ जिऊँगी
मगर दिल ने जहा धोका दिया,मैं वहा हाथ छोडूंगी
अपने भी वक़्त और जिंदगी
का ‘इश्तिराक’ ही कुछ इस तरह रहा…
जिंदगी का सही दौर ढूंढने में
ये वक़्त यूँही निकल गया..
और वक़्त के हसीन मोड़ पर
जिंदगी जीने का वो दौर ही निकल गया..
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©✍️”अशांत”शेखर
25/06/2022
*इश्तिराक-तालमेल