✍✍?दो कौडी की राजनीति?✍✍
दलित शब्द की गूँज का मचा है हाहाकार,
मीरा को टक्कर देगी, कोविंद की तलवार।
कोविंद की तलवार, सुनो भई कान लगाकर।
सेंके रोटी नेता दलित पर, देखें सब ध्यान लगाकर।
राजनीति की मण्डी में, हर चीज़ है इतनी सस्ती।
नारी भी कूंदी प्राँगण में, वह भी कैसे बचती।
नारी तो भारी हैं ही नर पर, ऊपर से दलित का ठप्पा ।
मीरा कोविंद में जय होगी किसकी, अभी हुआ न पक्का।
कुछ नेताओं ने पहले ही किया फैसला, कोविंद को देंगे वोट,
यह क्या, हाय, मीरा भी उतरी, खा गए गहरी चोट।
खा गए गहरी चोट, पैदा रोमाँच हो गया।
क्या अब होगी भितरमार, यह सस्पेंस हो गया।
कहता है ‘अभिषेक’ दलित शब्द का राजनीति ने खूब लाभ कमाया।
एक श्रेष्ठ दलित ने संविधान क्या इसी लिए बनाया।
सिकी फुलेमा रोटी को हर कोई खाना चाहे।
पर दो कौड़ी की राजनीति ने सब मानव मूल्य गवाएं।
( रचनाकार नारी और दलित का रत्तीभर भी विरोधी नहीं है पर कविता के नट वोल्ट कसने के लिए ही इन शब्दों का इस्तेमाल किया है, यदि कोई इन शब्दों के लिए आहत हो अथवा उसकी भावनाओं को ठेस पहुँचे तो इसके लिए क्षमा करें ) ##अभिषेक पाराशर(9411931822)##