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29 Aug 2017 · 1 min read

✍✍?एक बार फिर याद आया?✍✍

इक कलाम मस्ती का फिर याद आया,
वो हमसे चश्म पोशी करते हैं क्यों, यह फिर याद आया ।।1।।
निगाहें तरसती हैं उन्हें, देखने के लिए, देखें कैसे,
फिर वही फकीरों का तजुर्बा याद आया।।2।।
किस इल्म से देखूँ तुझे ज़र्रे ज़र्रे में,
इक मर्तबा फिर कृष्ण का वह गीत याद आया।।3।।
ख़ुद ब ख़ुद बातें उठीं अभिषेक के ज़हन में,तेरे इश्क में डूबूँ कैसे,
वो मीरा का अज़ीब इश्क़ याद आया।।4।।
रंजो ग़म हैं दुनिया में एक से बढ़कर एक,
सब्र का जो सुकून है तेरा, वो फिर याद आया।।5।।
तेरे करम में कोई कमी है क्या कहीं ऐसा तो नहीं,
दिन-रात होने का वो रिवाज़ याद आया।।6।।
तेरे हुस्न से पर्दा उठेगा कैसे, बता दो तो ज़रा,
बाल ध्रुव का वह दीवानापन, बचपन याद आया ।।7।।
राधा में र कार यदि होता नहीं तो ज़नाब,
आधे श्याम ही होते यह एक बार फिर याद आया।।8।।
मज़हबी किताबों ने रोका था जिसकी संगत से दूर रहने को,
उसकी संगत से तबाह, विलखता राम-रहीम याद आया।।9।।

(आखिरी दो पहरों कों सामरिक दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए लिखने का प्रयास किया हैं)

##अभिषेक पाराशर##

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