✍✍वैभवशाली भारतीय संस्कृति✍✍
सुन्दर उपवन, अंवराई की छाया में,
एक सुकुमार बैठा, शंका के साया में,
वह सोच रहा है, क्या होगा मेरे प्यारे देश का,
इसकी संस्कृति और वेश का,
विचारों में थी हमारी संस्कृति और हमारा वेश,
विचार शून्य होने के कारण बढ़ रहा क्लेश,
विचारों का हमने उन्मूलन कर दिया,
पश्चिमी फूहड़ता को ग्रहण कर लिया,
अपने विचारों को परिपक्व बनाना होगा,
हमें दोबारा परिवर्तन करना होगा,
अभी जाग जाओ भाई समय है,
करो नष्ट,मन से, वैचारिक गन्दगी को जो तन्मय है,
शुरुआत करो अपने निर्मल मन बच्चों से,
उनके कोमल तन से, भोले मन से,
उनके निर्मल मन पर, छाप छोड़ो सदविचारों की,
उठते, बैठते बतियाओं उनसे, क्यारी में, विचारों की,
सिखाओं उन्हें अपने देश की संस्कृति,
जो है, गर्व भरी, ऐसी है सुकुमार की हृदय अभिलाषा,
कुछ घट नहीं जाएगा आपका, एक पग बढ़ाओ तो जरा,
कितनी वैभवशाली है हमारी अपनी संस्कृति, सोचो तो जरा।। ##अभिषेक पाराशर(9411931822)##