☠☠नियत नहीं है साफ तो☠☠
नियत नहीं है साफ तो, सुन लो मेरे भाया,
होती जो गति वस्त्र की, ज्यों काँटन उलझाया।
काँटन में उलझाया वस्त्र के चिथड़े हो जाते,
धागे चुइ चुइ गिरें, पर वस्त्र न निकसति पाते।
होता बुरा है अन्त, बुरी नियत का भाया।
ज्यों गीले गुड़ पर माखी की, उड़त न बनिहै काया।
उड़त न बनिहै काया, चिपक चिपक मरि जाती,
सावधान हो जा रे मानव, यह संदेश सिखाती।
कह ‘अभिषेक’ कविराय, त्याग दो बुरी नियत की दृष्टि,
सुख की न बनिहै बात, दुःख की होइहैं ओला वृष्टि।
##अभिषेक पाराशर(9411931822)