☀️☀️मैं ग़र चाँद हूँ तो तुम्हें चाँदनी कह दूँ☀️☀️
मैं ग़र चाँद हूँ तो तुम्हें चाँदनी कह दूँ,
मैं ग़र चाँद हूँ तो तुम्हें चाँदनी कह दूँ,
दिल को मचलने का शौक़ था,
मैं रोया पर उन्हें कहाँ ग़ौर था,
ख़ुश्बू भर थी बस उलझनों की,
न पता उन्हें किस बात का शोर था,
मैं ग़र फूल हूँ तो तुम्हें कली कह दूँ,
मैं ग़र चाँद हूँ तो तुम्हें चाँदनी कह दूँ।।1।।
उनके दीदार में तब्बसुम^ की महक थी,
उनकी बोली में चिड़ियों की चहक थी,
कोई अफ़सोस न था, ग़र बात न करते,
फिर यह बेख़ुदी क्यों मेरी तरफ थी,
मैं ग़र ख़्याल हूँ, तो लफ्ज़ तुम्हें कह दूँ,
मैं ग़र चाँद हूँ तो तुम्हें चाँदनी कह दूँ।।2।।
वो सुनहरी थे, काले नहीं थे,
मेरे हाथों में गुलाब थे,छाले नहीं थे,
फ़र्क इतना भर था कि एतबार नहीं उन्हें,
पहले कहते,जुबाँ पर ताले नहीं थे,
मैं ग़र नाव हूँ तो पतवार तुम्हें कह दूँ
मैं ग़र चाँद हूँ तो तुम्हें चाँदनी कह दूँ।।3।।
बस बची अब बेक़रारी है,
आँखों पर अश्कों की सवारी है,
कोई राहत भी नहीं देगा तसल्ली भी नहीं,
उनकी हर बात अब चिंगारी है,
मैं ग़र साथ हूँ, वादा तुम्हें कह दूँ,
मैं ग़र चाँद हूँ तो तुम्हें चाँदनी कह दूँ।।4।।
तब्बसुम-मधुर मुस्कान
©®अभिषेक: पाराशरः