●●●ऐसी बरसात !
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तपन जब भूमि में होती, तरु जब माँगते हैं जल,
कृषक जब हार थक जाते, और तब रुकते हैं हल।
धरा की वेदना और प्यास , मिटाने को तब देखो,
उमड़ कर झूमते आते, बरसते मेघ घन बादल।
टिपटिपाहट सुनकर मन में, हो जाती है एक हलचल,
तभी सुनने को मिलता है, बादलों की बड़ी खलबल।
तभी सहसा हवाएँ ठंडी ठंडी , पुरुवा चल देती,
अवनी हो जाती है विह्वल, मगन हो जाता है जनबल।
अचला अनिल के स्पर्श से, तब सहम जाती है ,
रिमझिम मेह की बूंदों से ,बसुधा मुस्कुराती है ।
जब मिलते जलबिंदु धरणी के व्याकुल वक्षस्थल पर,
तड़पते प्यार में मिलने, की खुशबू आने लगती है ।
झमाझम झम झमाझम कर, जब जलधर बरसते हैं,
छमाछम छम छमाछम कर, मयूरा नृत्य करते हैं।
शीतल तेज सरसर करती हुई , पुरुवा के झोकों में,
विटप तरु रुंक्ष आपस में, आलिंगन को मचलते हैं।
नटखट बालकों की बड़ी , सुंदर मौज होती है,
बनाकर नैया कागज की, उमड़ती फौज होती है।
कभी गिरते कभी परते, हँस दलदल से उठ जाते,
बताते हारकर उठने में, कितनी मौज होती है।
तभी दादुर की टर्र टर, प्रेयसी की याद लाती है,
इक कशक उठती दिल में, अंतर्मन हिलाती है।
बताते हैं सभी दादुर , हमें संदेश देते हैं,
दिन अच्छे सबके आते हैं, जैसे बरसात आती है।
इस बरसात में भी खुशियाँ, सब पर भारी हो जावे,
होवे सतरंगी पूरी सृष्टि , स्वस्थ भू सारी हो जावे।
विधाता दे दो ऐसी वर्षा, भगवन सारी दुनिया को,
दह के धरा से नष्ट , सब महामारी हो जावे।
★★★★अशोक शर्मा 19.05.21.★★★★