◆{{ ◆ पाव की बेड़ी ◆}}◆
मैं ओस की बूंद सी पारदर्शी ,
तेरे वज़ूद पे गिरी, और तुम में समा गई,,
तेरी फ़ितरत पतंगे सी , उड़ने वाली,
जिस फूल पे टिकी, उसी पे रह गई ,,
बहुत चाहा तुझे छुपा लू, सब की नज़रों से,
मेरी यही आदत ,तुझे हर बार खल गई,,
न समझ पाया तू ,मेरे निश्च्छल प्रेम को,
मेरा हर अनुबन्ध , तुझे बन्धन लग गई,,
मेरी निगाह जब उठी, एक तेरी ही छवि देखी,
क्यों मेरी उमड़ी साँसे , तुझे आहें लग गई,,
तेरे दिल को जो भा जाए, वो अदाएं नही मुझमे,
क्यों मेरी सादगी , तुझे बनावटी लग गई,,
बखूबी जानता हैं ,, मेरी हर मन्नत हैं तू,
क्यों मेरे मन्नत के धागे, तुझे पावँ की बेड़ी लग गई,,