~~◆◆{{सो रही लोरी}}◆◆
दुनिया के दुखड़े हर दाता,
रोते मुखड़े हस्ते कर दाता,
ये कैसा आतंक फैल रहा
रही पल पल इंसानियत मर दाता।
ये कैसी राजशाही है,
ये सेवा नही तबाही है,
लूट लूट कर दुख दीनों को
पी पी खून भर रहे सब पेट दाता।
नफरत की रोटी सेक रहे,
सब अंधे होकर देख रहे,
मजहब के नारे गूंज रहे
लड़ रहा राम से रहीम दाता।
कश्मीर के लफड़े अलग हैं,
पंजाब के झगड़े अलग हैं.
रो रही दिल्ली रोज सिंघासन पर
पूरे हिंदुस्तान के मसले अलग दाता।
रिश्वतखोरी आम है,
बदनामों का नाम है.
क़ाबिल यहाँ गुलाम सब
है पैसे को सब सलाम दाता।
नारी का कोई सम्मान नही
शिक्षक को भी ज्ञान नह
लुट रही आबरू हर जगह
फेंक रहे तेजाब जो इनपर
इन राक्षसों की मुक्ति कर दाता।
झुठ का सब प्रचार है
बिका सब अखबार है
सच की कोई चमक नही
हो गया अज्ञान का कारोबार दाता।
संस्कारों की कोई बात नही,
जलते दीयों की अब कोई रात नही.
सब हुआ रोशन दिखावे से
चढ़ रहा चेहरे पर नक़ाब दर नक़ाब दाता।
शिक्षा का भी अब धंदा है,
नीम हकीम सब अंधा है.
पैसे की तूती बोल रही
कपड़े पहनकर भी सब नंगा है।
कुदरत भी अब बेहाल है
बिगड़ी धरती की चाल है
हो रहा रौद्र रूप अब
सब पेड़ पौधे रहे जल दाता।
पानी भी ज़हर पी रहा
समंदर भी तड़प तड़प जी रहा
बादलों की उड़ान भी फीकी अब
ना रही बरसात में वो मिठास दाता।
अब ना सावन बरसे है
कोयल कु कु को तरसे है
दिखते न पंछी आसमान पर
हो रहा जुल्म बेजुबान पर
कोई इनकी सुध भी ले दाता।
मान मर्यादा सब कूड़े पर,
रो रहा मेहमान बूहे पर,
किसको गले लगाएं अब
घूम रहे फ़क़ीर में शैतान दाता।
दोस्ती यारी दो धारी तलवार सी,
हो रही नियत यलगार सी.
गुस्से अहंकार में खोया है
चला सब कसमें वादों का व्योपार दाता।
प्यार के गाने बज रहे
मोहब्वत के बिस्तर सज रहे
सुन रहा न धड़कन की जुबान कोई
लगी हर तरफ जिस्म की आग दाता।
परिवारों में प्यार नही,
माँ बच्चे में दुलार नही.
कोरी आँधी पश्चिम की
सो रही लोरी अब नाजाने किस पार दाता
सो रही लोरी अब नाजाने किस पार दाता।