~~◆◆{{{{¶¶कसूर¶¶}}}}◆◆}~~
मोहब्बत का नही कसूर,कसूर इंसान का है,मोहब्बत तो है पाक उपहार खुदा का,कसूर तो मन बेईमान का है।
ये तो कच्चे धागों का पक्का रिश्ता था कभी,अब तो फेंके जाते हैं मीठी बातों के जाल रिझाने को,कसूर तो सारा झूठे कसमें वादे और कच्ची जुबान का है।
मन की खूबसूरती में खिला एक कोमल गुलाब है मोहब्बत,मिला रहे हैं जो जहर इसकी महक में नासमझ,कसूर तो जिस्म घूरते जहन में बसे शैतान का है।
हठ जोगी के तप की तरह निभाते थे मोहब्बत कभी आशिक़ आखरी दम तक,अब तो पल पल बदलती है मोहब्बत कभी इसके हाथ कभी उसके साथ,कसूर तो सारा सोच हैवान का है।
बर्षों बिना एक दूजे से मिले ही निभाते रहते थे कभी रांझे मोहब्बत,अब तो ना मिलो तो हो जाती है क़यामत,ये कसूर तो सारा प्यार के नाम पर चल रही दिखावे की दुकान का है।