◆आओ ना बरसात◆
◆आओ ना बरसात◆
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(मनहरण घनाक्षरी में रचना)
वर्षा काल अनमोल,नभ देता आंखें खोल।
हर्ष भरे मेघ भैया , धरती पे आओ ना।।
धरा अब तप रही, खुशियाँ भी ठप रहीं।
मिलकर सोंधी गंध, खुशबू फैलाओ ना।।
भेंक राह देख रहे, पपीहा भी दर्द सहे।
बाल जन मन नैया, अब मचलाओ ना।।
नावों वाली रेश आये,छपकी मुन्हें लगायें।
खेलें साइकिल दौड़, जल उफनाओ ना।।
पशु पक्षी शोर करें,आशा नित मोर करे।
मेघ टकराने वाली, शया चमकाओ ना।।
फूल बाग शूल बने, रास्ते अब धूल बने।
वायु भारी गर्द गर्द, नमीं दे बैठाओ ना।।
मन भींगे खुशी पाके, बचपन ताके झाँके।
खेल खलिहाल ताके, जल बरसाओ ना।।
पिया परदेश रहे , विरहन दर्द सहे।
पुरुवा के झोकों संग,दर्द पहुँचाओ ना।।
सूखे नदी ताल सर, बढ़ता गर्मी कहर।
जीव जंतु हाँफ रहे,जलधार लाओ ना।।
बहके मदन मन , चहके कोयल बन।
झूला झूलूँ प्यारी संग, टिपटाप आओ ना।।
मेंढकों की टर्र टर्र , झींगुरों की झर्र झर्र।
सांध्य गीत शुभ लागे, जल छलकाओ ना।।
कानन अब कट रही, वायु देखो घट रही।
तरु जड़ मानवता , ज्ञान से भींगाओ ना।।
नर बुद्धि सुधि नहीं, आपदा से क्रुद्धि रही।
क्लेश द्वेष घृणा सब, धरा से बहाओ ना।।
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अशोक शर्मा, लक्ष्मीगंज,कुशीनगर,उ.प्र.
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