■ सुविचार
■ मेरा दृष्टिकोण…
【प्रणय प्रभात】
बात जब मानव की होती है तो पहला ध्यान मानवीयता पर जाता है। जो वस्तुतः सभी मानवोचित गुण-धर्मों का समुच्चय है। वही सब गुण जिनके बिना मानव को मानव नहीं माना जा सकता। मेरे दृष्टिकोण से “कृतज्ञता” एक ऐसा भाव या गुण है, जिसमें से सभी गुण प्रकट होते हैं। कृतज्ञता ईश्वर, प्रकृति, जन्मदाता, पालक, मार्गदर्शक, सहयोगी सहित जड़-चेतन किसी के भी प्रति हो सकती है। जो दया, आदर, सेवा, संवेदना, अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह, अनुशासन, अनुशीलन, त्याग, समर्पण जैसे अनेकानेक भाव हृदय और मानस में उपजाती है।
उदाहरण देना हो तो श्री रामचरित मानस की एक चौपाई ही पर्याप्त है-
“सियाराम-मय सब जग जानी।
करहुं प्रनाम जोरि जुग पानी।।”
भावार्थ के अनुसार आप सृष्टि के कण-कण में अपने आराध्य का दर्शन करने लगिए। उनके प्रति सह-अस्तित्व की भावना के साथ नत-मस्तक होने का भाव जीवन मे धारण कर लीजिए। आप पाएंगे कि सब अपने हैं। सबकी पीड़ा अपनी है। सबके हित अपने हैं। इसके बाद आप पूरी तरह संवेदी हो जाएंगे। आपके प्रत्येक दुर्गुण पर सद्गुण स्वतः भारी पड़ जाएगा। राग-द्वेष, लोभ, मद, वैमनस्य, प्रतिशोध, एकाधिकार, अतिक्रमण, अधिग्रहण, दोहन, शोषण, हिंसा, दुर्व्यवहार, अशिष्टता आदि का नामो-निशान शेष नहीं रहेगा। कृतज्ञ होकर मान-सम्मान देंगे तो अहित की भावना का शमन हो जाएगा। बुरा करते, बुरा सोचते, बुरा सुनते, बुरा देखते आपकी आत्मा कम्पित होगी। आपका हृदय ही नहीं मस्तिष्क भी आपको धिक्कारने लगेगा।
विषय अत्यंत सरस व सरल होने के बाद भी विशद है। अत्यधिक विस्तार देने की आवश्यकता नहीं। अनुरोध अपने व अपनी संतति में कृतज्ञता के बीजारोपण का है ताकि वह एक समग्र मानवता के वृक्ष को जन्म दे। जिसकी शाखाएं अन्यान्य गुणों का प्रतिनिधित्व करें तथा उनके आश्रय में सभी शीतल छांह पा सकें।