जीवन के कुरुक्षेत्र में,
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
" अब कोई नया काम कर लें "
हर तरफ भीड़ है , भीड़ ही भीड़ है ,
23/24.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
साहित्य में प्रेम–अंकन के कुछ दलित प्रसंग / MUSAFIR BAITHA
इस क़दर फंसे हुए है तेरी उलझनों में ऐ ज़िंदगी,
रिश्ते चाहे जो भी हो।
विनोद कृष्ण सक्सेना, पटवारी
25-बढ़ रही है रोज़ महँगाई किसे आवाज़ दूँ
कितना रोके मगर मुश्किल से निकल जाती है
कहाँ चल दिये तुम, अकेला छोड़कर
सीता स्वयंवर, सीता सजी स्वयंवर में देख माताएं मन हर्षित हो गई री
कितने छेड़े और कितने सताए गए है हम
परेड में पीछे मुड़ बोलते ही,