■ विज्ञापनलोक
■ धर-पकडी….
【प्रणय प्रभात】
टीव्ही पर रोज़ आने वाले तमाम विज्ञापन ख़ुद साबित कर देते हैं कि उनकी स्क्रिप्ट कितने बड़े ज्ञानी ने लिखी होगी। एक उदाहरण देता हूँ आपको।
विज्ञापन है एक ब्रांड-विशेष की हींग का। जिसमें एक महिला बोलती है- “मेरी बनाई दाल के साथ भी ऐसा ही होता है। क्योंकि मैं उसमें लगाती हूँ फुस्स ब्रांड शाही हींग का तड़का। वो भी बस चुटकी भर।”
अब कोई एड-राइटर से पूछे कि “हींग का तड़का चम्मच भर के कौन लगाता/लगाती है? हींग चाहे जिस भी ब्रांड की हो। फुस्स या ढुस्स। तड़का चुटकी भर ही काफ़ी होता है। फिर हींग चाहे फुस्स ब्रांड की हो या ढुस्स ब्रांड की।
अच्छी बात बस इतनी सी है कि चुटकी भर हींग का तड़का लगाने वाली देवी टीव्ही से बाहर नहीं आती। सामने आती तो मेरे जैसा आदतन बतोला कहे बिना नहीं मानता कि- “बस कर बावली! अब रुलाएगी क्या…?”
इसीलिए कहते हैं भैया! विज्ञापन की स्क्रिप्ट लिखने वालों जो सम्बंधित क्षेत्र और विषय की जानकारी भी होनी चाहिए। “हींग-पुराण” लिखने वाला बावर्ची होता तो इत्ती बड़ी मिस्टेक भूले से भी न करता। 😊😊😊