■ एक नज़र हालात पर
■ विडम्बना….
जिन्हें विचारशील माना जाता रहा है, वो सब अब सियासी मर्तबान में शर्म-हया और नैतिकल का अचार डालने में जुटे हैं। देश की किसी को फ़िक़्र नहीं। विडम्बना यह है कि देश की जनता मौन है। सोचिएगा दोषी कौन है…?
【प्रणय प्रभात】