फिल्मी नशा संग नशे की फिल्म
*शत-शत नमन प्रोफेसर ओमराज*
प्रकृति (द्रुत विलम्बित छंद)
राखी रे दिन आज मूं , मांगू यही मारा बीरा
नम आंखों से ओझल होते देखी किरण सुबह की
टूटकर, बिखर कर फ़िर सवरना...
साहित्य चेतना मंच की मुहीम घर-घर ओमप्रकाश वाल्मीकि
तुम्हें लगता है, मैं धोखेबाज हूँ ।
अगर दुनिया में लाये हो तो कुछ अरमान भी देना।
युद्ध घोष
डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम
सोशल मीडिया पर दूसरे के लिए लड़ने वाले एक बार ज़रूर पढ़े…
किसी के साथ सोना और किसी का होना दोनों में ज़मीन आसमान का फर