■ अहमक़ आईने का सस्ता इलाज…
■ अहमक़ आईने का सस्ता इलाज…
【प्रणय प्रभाते】
क्या आपका चेहरा विकृत है? क्या आपको आईना रोज़ चिढ़ाता है? क्या आपका ब्लड-प्रेशर बेनागा बढ़ता है? क्या आईने का सच आपको शूल बन कर चुभता है? क्या आप आर्थिक व मानसिक रूप से भी अक्षम हैं?
यदि हां, तो “प्लास्टिक सर्जरी” जैसा मंहगा रास्ता मत अपनाइए। बिल्कुल सस्ता इलाज अपनाइए। घर से बाहर निकलिए। एक पत्थर उठा कर लाइए और मार दीजिए आईने पर। अपनी शक़्ल पर मारने की हिम्मत तो होगी नहीं आपके पास। इसलिए निशाना बनाइए आईने को। ना रहेगा बांस, ना बजेगी बांसुरी।
आख़िर पता तो चले कम्बख़्त को, कि किस सिरफ़िरे से ले रहा था पंगा। अहमक़ आईने को सुधारने का इससे भारी और बेहतर उपाय दुनिया में दूसरा नहीं। और हां, असली बात तो रह ही गई। दुष्ट दर्पण को चकनाचूर करने के बाद सतर्कता से विसर्जित अवश्य करें। कहीं ऐसा न हो कि उसकी किर्ची चेहरे के अलावा कहीं और मिर्ची भर दे।
वो क्या है ना, “संविधान” उस आईने का भी पढ़ा हुआ हो सकता है। हो सकता है कि उसे “मुण्डकोपनिषद” से निकला “सत्यमेव जयते” भी पता हो। वैसे भी ज़माना डिज़िटल हो चुका है। ऐसे में कोई ज़रूरी नहीं कि गंवार आईना चुपचाप बैठ जाए। निकली हुई बात को लेकर दूर तक गया, तो नई मुसीबत खड़ी हो जाएगी। भाई मेरे! ये दुनिया बड़ी घाघ है। ज़्यादा डकराएगा तो समझ जाएगी कि किसी ने दुखती रग को छेड़ दिया है। वैसे भी तमाम लोग डकार से जान जाते हैं कि पेट में ठूंसा क्या गया है।
दुनिया को पता चल जाएगा कि विकृत आपका चेहरा ही नहीं था। उससे अधिक विकृत थी आपकी मानसिकता। लोगों को शायद यह भी माकूम हो जाए कि आईने के हश्र के पीछे किसका हाथ था। कुल मिला कर पंगा लेने से परहेज़ कीजिए और ख़ामोश होकर बैठिए। इसी में सार है, क्योंकि यह दुनिया आपके बाप का कुआं नहीं संसार है।।
★संपादक★
न्यूज़ & व्यूज़
श्योपुर (मध्यप्रदेश)