हर रोज़ यहां से जो फेंकता है वहां तक।
मातृशक्ति का ये अपमान?
Anamika Tiwari 'annpurna '
दूसरे का चलता है...अपनों का ख़लता है
अब छोड़ जगत आडंबर को।
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
किसी भी चीज़ की ख़ातिर गँवा मत आज को देना
पुरुष की वेदना और समाज की दोहरी मानसिकता
कोई आज भी इस द्वार का, सांकल बजाता है,
क्या मिला है मुझको, अहम जो मैंने किया
*न्याय-देवता के आसन पर, बैठा जो यदि अन्यायी है (राधेश्यामी छ
क्या पता मैं शून्य न हो जाऊं
राम वन गमन हो गया
सुशील मिश्रा ' क्षितिज राज '
कुण्डलियां छंद-विधान-विजय कुमार पाण्डेय 'प्यासा'
(कहानी) "सेवाराम" लेखक -लालबहादुर चौरसिया लाल
आप देखो जो मुझे सीने लगाओ तभी