■सामयिक दोहा■ ■सामयिक दोहा■ “भुन, भुन, भुन, भुन हर तरफ़, गूंज रहा इक राग। एक कमल लाखों भ्रमर, कैसे बचे पराग??” ●प्रणय प्रभात●