■किसे कहोगे तुम सुदामा■
जग में अब ऐसा यार कहाँ,
चावल दानों में प्यार कहाँ,
मित्रता की लघु हुई पैजामा,
अब किसे कहोगे तुम सुदामा।
जो स्वार्थ सिद्धि में सकुचाये,
अपना रूखा प्रभु को भी खिलाये,
है निस्वार्थ दोस्ती कहाँ हो रामा,
अब किसे कहोगे तुम सुदामा।
यारों की तो अब प्रीत गंगा,
हुई विषाक्त रही न चंगा,
लिखूँ कैसे एक विश्वासनामा,
अब किसे कहोगे तुम सुदामा।
एक श्रीहीन तो एक श्रीहरि,
दोनों हृदय बस यारी से भरी,
जो माने अपना सब कुछ श्यामा,
अब किसे कहोगे तुम सुदामा।
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अशोक शर्मा, कुशीनगर,उ.प्र.
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