६४बां बसंत
ईश्वर की महान अहैतुक कृपा से, मनुष्य जन्म मिला और ६३बसंत देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है।अब ६४ वे बर्ष में प्रवेश कर रहा हूं।जब से होश संभाला आजकल की तरह जन्म दिन मनाने की परंपरा तो नहीं थी, लेकिन माता पिता बड़े बुजुर्गो ने जब तक रहे सदैव स्मरण कराया, भगवान का लाख-लाख शुक्रिया किया, चूंकि जन्म मकर संक्रांति अर्की के दिन हुआ था इस लिए घर में ही क्या दुनिया में लड्डू पकवान आदि बनाए जाते हैं। मैं घर में प्रथम संतति था सो बताया गया कि जन्मोत्सव धूमधाम से मनाया गया, सभी परिजन रिश्तेदार ग्रामवासी शामिल हुए स्वागत सत्कार बंदूकें चलाकर खुशियों का इजहार किया गया। अब उनमें से दादा दादी नाना नानी बुआ फूफा मामा मामी ताऊजी ताईजी चाचा-चाची मौसा मौसी जी, शादी के बाद मेरी सास ने भी मुझे मां समान प्रेम दिया भरा पूरा परिवार साले सालियां सराज बच्चों सभी ने मुझे बहुत प़ेम दिया।कई निकट संबंधी चले गए हैं अभी छोटी वुआ हैं।जो चले गए हैं उन सबके
बाल-बच्चे मौजूद हैं,जो मेरे भाई वहिन हैं।
आज जब मैं ६४ बां बसंत देख रहा हूं तो मैं, भगवान के चरणों में लख लख प्रणाम करता हूं कि आपने मुझे भारत में इतने अच्छे परिवार में जन्म दिया,इतने अच्छे नाते रिश्तेदार मित्र परिजन दिए।अपने उन सभी परिजनों गुरु अध्यापकों के चरणों में प्रणाम करता हूं जिनसे प्रेरणा प्रकाश से मैं प्रकाशित हुआ जिनके बीच में इन ६३ बसंतों में अति आनंद की अनुभूति हुई।
आज के अवसर पर मैं देश समाज मित्र, बड़े बुजुर्गो सभी जिनसे मेरा प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से संपर्क रहा सभी को नमन करते हुए हृदय से कृतज्ञता ज्ञापित करता हूं।
आप सभी का स्नेही