४ -कविताओं की बरसात
अबकी बार मंच पर हो रही कविताओं की बरसात,
कवि गण जुटा अपने भावों और विचारों की सौगात
अनुभूति की बूंदों को जोड़कर कर रहे जमकर बरसात
कोई कह रहा सावन की पहली बरसात
किसी के मन मंदिर से निकल रही दुआ की नाद
रहमतों की सुनाई कर रही बन बरसात
कोई भिगो रहा रोम-रोम सुनाकर बचपन की बरसात
जल की बौछार से हुई जब सुनी अपने गांव की बरसात
पुरानी यादों की बरसात से तर-बतर हो जाता पूरा गात
करती जब मैं गलतफहमी की बरसात की बात।
कभी इतने मादक हो गए जलधर,उत्पातीबन बरसे बादल
बारिश विरह की बढ़ा देते पीर स्मृति पिया का आलिंगन
कहीं बावरी बरसात बरस जाती नैनौ से आंसू -सी आग
जगा देती मन मस्तिष्क में बिछड़े अहसास
सहसा उठ पड़ते फिर से कोई नया ख्बाव
कहीं बारिश कर रही नफरत की धुलाई
वो बरसाती सी करूणा भरी मेघावलि जबआई
उम्मीदों से भरी जब मैंने पढ़ी वो बरसात
नया सबेरा जल्द आए ऐसा हुआ एहसास।
– सीमा गुप्ता,अलवर राजस्थान