२४३. “आह! ये आहट”
हिन्दी काव्य-रचना संख्या: 243.
“आह! ये आहट”
(वीरवार, 13 दिसम्बर 2007)
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ईक आहट
बेवक्त
बेवजह
होती है क्यूं बेमौसम।
याद आए
अनजाने यों ही
एतबार कर खाई कसम।।
ये इंतजार लंबा है
तन्हाईयों भरा है
गम की नदियों से सरोबार है।
मगर
ऐसे इंतजार के बाद भी
बहारों का इंतजार है।।
शायद !
वो आहट
बहारों की दस्तक हो
या फिर-
उनके कदमों की आहट
जिनसे
ये बहारों का मौसम बरकरार है।।
पक्षियों में कलरव है
बारिश में शरारत है
और
फल फूल रंगदार है।।
-सुनील सैनी “सीना”
राम नगर, रोहतक रोड़, जीन्द (हरियाणा) -१२६१०२.