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20 Oct 2021 · 1 min read

॥रक्तपात होना चाहिए॥

—————————–
रक्तपात होना चाहिए॥
पत्ते स्वयं झड़ते हैं,
बुराइयाँ नहीं….
रक्त बहना ही चाहिए
दोष तय करने के लिए।

बचकर निकलना
आदमी और जानवर दोनों के लिए
आवश्यक है।
पके हुए लाल अनार को इससे चिढ़ है।
तोड़ो नहीं तो टूट कर सड़ जाऊंगा
आदमी भी सड़ें गुनाह के कठघरे में।

रोकने रक्तपात संविधानों की लंबी कतारें हैं
भाषाई सीमा तोड़कर।
ये संविधान बतियाते हैं ”तुमने कितने रोके?”
ठठाकर हंस देते हैं, उत्तर नहीं देते।
पन्ने रक्तपात के भय से सफ़ेद पड़े रहते हैं।
क्योंकि यह पठन सामाग्री नहीं है।
न तो सार्वजनिक वाचन-सामाग्री।
संविधान हर सवाल को बेहूदा मानता है
यदि
अध्ययन करने वाले को चोट न पहुंचे तो।
पेड़ के पत्ते हरे-भरे संविधान की तरह फड़फड़ाते हैं
और किसी का ध्यान न खींच पाने की खीझ और शर्म से
पीले हो जाते हैं।
यही तो नियति है।
रक्तपात का आमंत्रण आ चुका है।
अब चलें।
——————–19/9/21————–

Language: Hindi
277 Views
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