।। बरसात ।।
बादल तो छा गये,बरसात आना बाकी है
आसमान की गोंद में,मानो पत्थर बाज़ी है
धूल, धुआँ, धुन्ध, धमाल ,पवने झकोर लिये
घोर, घटा,घाम, कहीं,फुहार आना बाकी है ।।1।।
मन, मस्त,मदन,झूमें, मोर आना बाकी है
झूमें सब ओर छोर, जोर जोर बाग झूमें
काली घटा लिये, नभमंडल मानो केशकाला
घूर घूर देखे बाल, इन्द्रधनुष आना बाकी है ।।2।।
पपिहा की बोली,जहर लागे सजनी को
सुध बुध भूलि बोले, नहि देखे जननी को
घूमत फिरत रहै ,नहि देखे रात-दिन
सुन्दर सुहाना लगे,हरियाली लदे अवनी को ।।3।।
इन्द्रधनुष का सातो रंग प्यारा लागै
विरहन द्वार खड़ी, आठो पहर जागै
बारिश की बूंदों में वह, बदन भिगाये भागे
पिय के डहर में, निश दिन वह जागै ।।4।।
बूँद बूँद चूमे उसके ,सुन्दर कपोल को
केश से टपक कर, दृग मूदै डोल के
भीगी अंग विरहन, झूम झूम बोल के
प्रेम रस डूबी रही, पिय आना बाकी है ।।5।।
रचनाकार
संजय कुमार *स्नेही *आजमगढ़ उत्तर प्रदेश
स्वरचित मौलिक अप्रकाशित रचना सम्पर्क सूत्र 9984696598
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