।।मङ्गल करती धरती।।
हिमाद्रि तुङ्ग शृंग पर
भानु की पहली किरण,
पड़ते ही चमक उठी
दुल्हन की विंदिया सी ।
सुन्दर कपोल लाल हो उठे
प्रभाकर की दृष्टि पड़ते ही,
चमक उठी आभा मण्ड़ल
दुल्हन नई नवेली सी ।
कल-कल करती नदिया अह्लादित
या झनकार हो झरनो की,
आकर्षित कर्णश्रब्य को
जान पडे गति पायल की ।
मंद पवन के झोंके आये
प्रेम प्रणय की अभिलाषा लेकर,
सुगम संगीत विखेरते पक्षी
नव भारत की आशा लेकर ।
मंङ्गल करती धरती”नव आगंतुक”
लेकर सुगंध की मीठी धार,
तृप्त हुए पथिकों के चक्षु
पाकर प्रकृति का नव उपहार ।