।।बचपन के दिन ।।
।।बचपन के दिन ।।
काश वो बचपन के दिन फिर से लौट आते।
हम फिर से छोटे छोटे बच्चे बन जाते ।
इतराते बल खाते हुए लड़ियाते झूमते और गाना गाते।
अपने छोटे भाई बहनों के साथ थोड़ा सा लड़ते झगड़ते हुए बचपन बिताते।
आज हम अपने जीवन के वो दिन याद करते हुए बेहद पछताते ।
ना जाने हम इतने जल्दी बड़े क्यों हो जाते।
बचपन के वो कितने सारे खेल अब अपने बच्चों को भी बतलाते।
अब नही रहा वो खेल खिलाडी अब तो वीडियो गेम में धूम मचाते।
अपना बचपन बीता गया अपने बच्चों के बचपन में ही कमियों को पूरी कर लेते।
जो न कर सके अपने बचपन में वो अपने बच्चों में ही पूरा कर पाते।
बचपन से जो आस लगाए अब पूरी करेगें अपनी बच्चे में ही ढूढ पाते ।
वो बचपन की यादे वो नांना नांनी की कहानियाँ कह पाते।
खेल कूद में समय बिताते अब ना जाने कुछ समय ना दे पाते ।
आ गया ये कैसा जमाना कोई किसी को लेकर किसी को बदल ना पाते ।
गुजरा जमाना बदल कर नयापन दे नही पाते ।
जो जैसा है वैसा ही रहेगा क्योंकि कहीं नही हम सभी सुकून चैन है पाते ।
बचपन के दिन फिर से क्यों लौट कर नही आते ।
आज फिर से वो पुराने साथी और जमाने क्यों लौट कर नही आते ।
बाल दिवस के उपलक्ष्य में ये कविता लिखी गई है।
📝📝 *** शशिकला व्यास ***
# भोपाल मध्यप्रदेश #