ज़ीस्त
हालातों के सैलाबों में ज़ीस्त एक क़िश्ती है।
जिसे हादसों के थपेड़ों से डगमगा कर डूबने से बचाना होगा ।
साजिशों के भँवर भी आएंगे तेरी राह में बार बार
स़ब्र की पतवार लिए तुझको सँभलकर निकलना होगा हर बार ।
ज़ुल्म और अल़म की चट्टानें भी आएंगी जब तब अनेक ।
टूट कर बिखरने से बचा पाएगा अपना
ज़मीर -ओ- ईम़ान
जब होंगे तेरे इरादे नेक ।
तय कर पाएगा तभी तू हर फासले।
जब होगी तुझमे हिम्मत और होंगे तेरे बुलंद हौंसले ।
ग़र भूलकर कर भी किया तूने समझौता लहरों से छोड़कर अपनी पतवार ।
तब तय़ है डूबेगी तेरे ज़ीस्त की यह क़िश्ती बीच मँझधार ।
या टकरायेगी चट्टानों से टूट कर बिखर जाएगी
या उलझेगी इस कदर भंँवर में फिर न उबर पायेगी।