ज़िन्दगी
मैंने तुम से चाहा था
गगन भर प्यार!
यह कैसी किस्मत की मार!!
तूने मुझसे ही ठान दी रार!!
कहां तो चाहा था-
आसमान के कैनवास पर,
बिखरे रंगों के बगुले,
मुट्ठियों में भींच कर,
धरती को धानी कर दूँ!
तूने मनमानी की-
मुझे बेमानी कर दिया!!
जी करता है-
पंछियों की उड़ानें,
समेटकर!
सुनहरे,सतरंगे सपनों तले,
किसी साँझ!!
घर लौटती रूह को,
प्राणपण से,
अपनी रूह में,
डुबोकर सो जाऊं!
तूने झकझोर दिया!!
आह, जिंदगी!
तूने इशारा किया,
और
उम्र तमाम हो गई!