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2 Mar 2017 · 1 min read

ज़िन्दगी है ग़ज़ल

तू कभी घर मेरे आना_ज़िन्दगी।
साथ मेरे गुनगुनाना___ज़िन्दगी।

रूठ जाऊँ मैं कभी तुझ से तो’ फिर,
तू मुझे हँस के मनाना___ज़िन्दगी।

कम नहीं होते ग़मों के सिलसिले
ग़म भुला कर मुस्कुराना__ज़िन्दगी।

रात है दुख की अभी तो क्या हुआ
चाँद सुख का तू दिखाना__ज़िन्दगी।

बेबसी का हर अँधेरा भेद कर
आस का सूरज उगाना__ज़िन्दगी।

भर गया जी, मतलबी दुनिया से,अब
पास अपने फिर बुलाना__ज़िन्दगी।

दर्द हो कितना मगर कहते नहीं,
राज़ मत उनको बताना__ज़िन्दगी।

मौत आयेगी भरोसा है मगर
तेरे कल का क्या ठिकाना ज़िन्दगी
……
डा.हेम

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