ज़िन्दगी हमको बिताना आ गया
ज़िन्दगी हमको बिताना आ गया
रोते रोते मुस्कुराना आ गया
ज़ख्म देने में लगे इंसान सब
आजकल कैसा ज़माना आ गया
माँ मिली जो घर के बाँटे में हमें
झोली में हर इक खज़ाना आ गया
डर नहीं लगता किसी से अब हमें
आँख सूरज को दिखाना आ गया
दाँव सारे सीख दुनिया के लिए
हमको भी रिश्तें निभाना आ गया
याद के साए लिपट हमसे गए
मोड़ जैसे ही पुराना आ गया
माही
अमरसर, जयपुर