नज़्म/”ऐ ज़िन्दगी से मौत तक के मुसाफ़िर,तेरा ख़ुदा कौन है आख़िर?”
ये छायादार फलों से लदें दरख़्त
ये झूमती फसलों में कंघी करती
थके हर लम्हें हर फ़लसफ़े से खेलती
ये चारों दिशाओं की हवाएँ मेरा ख़ुदा है
ऐ ज़िन्दगी से मौत तक के मुसाफ़िर
तेरा ख़ुदा कौन है आख़िर ?
ये कभी ना सूखने वाला गहरा समंदर
ये इक़ दिशा में बहता दरिया औऱ नदियाँ
ये कल कल की आवाज़ में सुर लगाते झरने
ये सुर्ख़ लाल सूरज, ये नूर बरसाती किरनें
ये पंछियों के गीत सब के सब मेरा ख़ुदा है
ऐ ज़िन्दगी से मौत तक के मुसाफ़िर
तेरा ख़ुदा कौन है आख़िर ?
जिस सूरज ने अपनी रौशनी का हिसाब ना माँगा
जिस बादल ने अपने पानी का हिसाब ना माँगा
जिस ज़मीं ने कभी क़दमों का हिसाब ना माँगा
ये सूरज ,ये बादल ,ये ज़मीं सब ही मेरा ख़ुदा हैं
ऐ ज़िन्दगी से मौत तक के मुसाफ़िर
तेरा ख़ुदा कौन है आख़िर ?
इन नन्हें नन्हें बच्चों के चेहरों की मुस्कान
ये दुआं में उठे हाथ औऱ मीठी मीठी जुबान
ये मौसमों की बदली,ये फ़िज़ा संदली संदली
ये बिन जात-मज़हब के रिश्तें सब मेरा ख़ुदा हैं
ऐ ज़िन्दगी से मौत तक के मुसाफ़िर
तेरा ख़ुदा कौन है आख़िर ?
ये आसमां में तारें ,ये आसमां में चाँद
ये रात का अँधेरा ,ये हँसता हुआ सवेरा
ये फूलों की मुस्कान, ये काँटें पासबान
इंसानियत हो जहाँ वो हर मैदां मेरा ख़ुदा है
ऐ ज़िन्दगी से मौत तक के मुसाफ़िर
तेरा ख़ुदा कौन है आख़िर ?
___अजय “अग्यार