ज़िन्दगी से डरा गया कोई
आग जीवन मे लगा गया कोई
दिल को मेरे दुखा गया कोई।
लहराता हुआ मैं इक़ फूल था,
रूखी बातोंसे जिसे मुर्झा गया कोई।
देखे थे मैंने भीऊँचे महलों के ख़्वाब
नफऱत से जिसे गिरा गया कोई।
ठानी थी अच्छे बने रहने की हमने,
बुरा करके बुरा मुझे बना गया कोई।
तपती सी लगती है शीतल ज़मी भी,
राहों में अंगारे ऐसे बिछा गया कोई।
मौत ही मौत सदा माँगता हूँ मैं रहता
जिंदगी से इस कदर डरा गया कोई।