ज़िन्दगी में हादसा सा हो गया
ज़िन्दगी में हादसा सा हो गया
अजनबी इक हमनवा सा हो गया
पास बैठा हंस रहा था जो मेरे
मैं हंसा तो वो ख़फ़ा सा हो गया
जाने क्या किस्मत में लिक्खा है मेरी
फ़ासलों का सिलसिला सा हो गया
अलविदा कहकर गया है जब से वो
दिल मेरा ये खोखला सा हो गया
ज़ह्’न की दुनिया में इतनी भीड़ है
मैं अकेला क़ाफ़िला सा हो गया
शाम ढलती जा रही आया नहीं
माँ का दिल कुछ बावला सा हो गया
मुफ़लिसों के देखकर ‘आनन्द’ का
दिल दुखी औ’र अनमना सा हो गया
– डॉ आनन्द किशोर