ज़िन्दगी में ऐतबार कौन करे
ज़िन्दगी में ऐतबार कौन करे ,
डूब कर समुंद्र में दरिया पार कौन करे
ज़िन्दगी तो एक तमाशा है ,
बेवफाओं से याँ प्यार कौन करे .
छीन लिया जिसने सुकूं और चैन ,
अब रातों में नींद का इंतज़ार कौन करे
कदम लगे हो लडखडाने राह पर
तो मंजिल का इंतज़ार कौन करे
चाहने वाले उसको हाजारों है जहां में
अब उसको भला प्यार कौन करे
सब थके हारे है मुसाफिर मंजिल की तलाश में
अब भला छुटी को इतवार कौन करे
दो वक्त की रोटी नसीब नही लोगों को
उनके हक के लिए खड़ी दिवार कौन करे
ये जहां स्वार्थ का अखाड़ा है
चेहरे पर चढ़े मुखोटो का ऐतबार कौन करे
भूल गए असली चेहरा अपना ही
चढ़ी धुल की परत से अब इनकार कौन करे
इल्तिजा है याँ अब उस्तादों से
अब की इस बिमारी का उपचार कौन करे
भूपेंद्र रावत
25/09/2017