ज़िन्दगी के रंग
मेरी कलम से…..
कभी हम भी हँसा करते थे,
कुछ दोस्तों के संग…..!
समय बदला मौसम बदले,
बदल गए सब रंग.….!!
सब कुछ छूटा,
ज़िम्मेदारियों ने…
ख्वाहिशों को लूटा!
न गिल्ली डंडा अब,
न उड़ी पतंग….!
जीवन का तन्हा सफर,
बदल गए जीने के ढंग….!!
चलो चलने दो,
यूँ ही ज़िन्दगी…!
कभी दौड़ती तो कभी,
थमती सी ज़िन्दगी…!
न आरज़ू न कोई उमंग,
न जीवन में कोई तरंग!!
रचनाकार,
संजय गुप्ता।
?????