ज़िन्दगी की किताब
ज़िन्दगी की किताब में धूमिल से कुछ पन्ने हैं
कुछ किरदार मिटे हुए कुछ अभी बनने हैं
किस्से हैं कुछ सुने हुए कुछ अभी सुनने हैं
कुछ ख्वाब हैं टूटे हुए तो कुछ अभी बुनने हैं
हाँ, ज़िन्दगी की किताब में धूमिल से कुछ पन्ने हैं
कुछ पल थे उसने चुने कुछ मुझे अब चुनने हैं
हैं बेनाम से कुछ रिश्ते झुलसे हुए
तो कुछ अभी झुलसने हैं
जब इन पन्नो को मैं पलटता हूँ तो कुछ अशार हैं लिखे हुए
बचे हुए कुछ पन्नो में बस कुछ अशार और लिखने हैं
ज़िन्दगी की किताब में
धूमिल से कुछ पन्ने हैं |
मनीष