ज़िन्दगी की इक दवा सा हो गया
दर्द जब हद से ज़ियादा हो गया
ज़िन्दगी की इक दवा सा हो गया
हार किस्मत में मेरी थी लाज़मी
फिर से सीधा उसका पासा हो गया
कुछ गवाही भी नहीं मज़बूत थी
कुछ मेरा दावा पुराना हो गया
दोस्त बनकर रह रहा था साथ जो
वक़्ते-मुश्क़िल वो पराया हो गया
राज़ जो मालूम था बस आपको
हर गली क्यूँ इसका चर्चा हो गया
जैसे चाहो आज़माकर देख लो
दिल का रिश्ता अब तो पक्का हो गया
जब किसी की आँख से आँसू बहे
फिर नुमाया उसका दुखड़ा हो गया
गोलियाँ जब बेगुनाहों पर चलीं
हाल वादी का घिनौना हो गया
मोम की मानिंद था ‘आनन्द’ भी
दिल भी पत्थर सा तो उसका हो गया
– डॉ आनन्द किशोर