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2 Apr 2017 · 1 min read

ज़िंदगी

ज़िंदगी!तुम कब तक रहोगी बनकर पहेली इस ह्रदय में
बोल भी दो
बेचैन होती स्वांस में तुम प्रेम का रस घोल भी दो।
आज उर के बंधनों नें झंकृत किया सबको,सभी को
कोशिश करो तुम
सब ह्रदय के तार को और छिपे प्रेम प्रहार को तुम मोड़ ही दो
बेचैन होती स्वांस में तुम आज मधुरस घोल भी दो।
आकर बसें अरि-मित्र दिल में छोड़कर के महल सारे
भावनाएँ रूप बदलें प्रेम से सजकर संवर कर,
देख लो,आश्वस्त हो लो
स्वांस,छोटी धड़कनों में प्रेम से तुम प्रेम का रस घोल ही दो।
ज़िंदगी!तुम कब तक रहोगी बनकर पहेली इस ह्रदय में
बोल भी दो
बेचैन होती स्वांस में तुम प्रेम का रस घोल भी दो।

Language: Hindi
223 Views
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