ज़रा सा एक क़दम जब कभी उठाया है
ज़रा सा एक क़दम जब कभी उठाया है
जहान सारा मुझे पीछे खींच लाया है
लगे है देख के तुझको मुझे यही हर पल
फ़लक से चांद ज़मीं पर उतर के आया है
ख़ुदा नज़र न लगे इसको अब ज़माने की
मेरे नसीब में तेरा जो प्यार आया है
खिले हैं फूल तभी और है फ़िज़ा हरसूं
जो हमने वक़्त का संगीत गुनगुनाया है
जहाऋ सवाल है रोटी का बात ये ऐसी
सदा ही जिसने मेरे ज़ह्’न को घुमाया है
लरजता दिल भी रहा और साँस भी थमती
किसी ग़रीब की आहों ने यूँ रुलाया है
सदा ही दिल से हूँ अहसानमंद मुश्किल का
कि मुश्किलों ने मुझे जीना भी सिखाया है
सभी को बाँट दिये फल सभी को दी छाया
उसी शजर पे समर बार – बार आया है
अभी न हौसला ‘आनन्द’ छोड़ना यूँ ही
कि जुगनुओं ने हमें रास्ता दिखाया है
– डॉ आनन्द किशोर